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Saturday, May 23, 2009

यात्रा और ज्योतिष - कविता चैतन्य

यह सभी जानते हैं कि मई-जून में यात्राओं का दौर जोरों पर रहता है। बच्चों के स्कूल बंद होने के बाद तनावमुक्त होने के लिए लोग सपरिवार हिल स्टेशन, धार्मिक स्थल, गांवों आदि की यात्राओं का कार्यक्रम बनाते हैं। कभी-कभी यात्राओं का यह सफर मनोरंजक न होकर तनावयुक्त व दु:खद हो जाता है। परंतु शुभ समय को ध्यान रखकर मुहूर्त अनुसार यात्रा के लिए प्रस्थान किया जाए तो यात्रा मनोरंजनपूर्ण व सुखद होती है। साथ ही कुशलतापूर्वक घर में वापसी भी होती है।
यात्रा के समय मुहूर्तो में चंद्रबल, भरणी, भद्रा, योगिनी विचार, दिशाशूल आदि का विशेष ध्यान रखना श्रेयस्कर रहता है। तिथियों में षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी, रिक्ता (चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी) को छोड़कर शेष तिथियां यात्रा में ग्राह्य है। अमृतसिद्धि या सर्वार्थसिद्धि योगों में तिथि विचार के बिना भी यात्रा की जा सकती है। नक्षत्रों में अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती नक्षत्र में यात्रा श्रेष्ठ रहती है। यात्रा में चंद्रबल शुद्धि विशेष रूप से शुभ फलदायी होती है। इसके लिए राशियों का दिशाज्ञान होना आवश्यक है। जिस दिशा की राशि में चंद्रमा का गोचर हो उसी दिशा में चंद्रमा का वास होता है। चंद्रमा सदैव यात्रा में सम्मुख दाहिने होना चाहिए। बारह राशियों में अग्नि तत्व (मेष, सिंह, धनु) राशियां पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए यदि चंद्रमा इन राशियों में हो तो पूर्व तथा उत्तर दिशा की यात्रा विशेष फलदायी होती है।
पृथ्वी तत्व (वृष, कन्या, मकर) राशियां दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं, इन राशियों में चंद्रमा का गोचर दक्षिण व पूर्व दिशा की यात्रा को शुभ करता है। यदि पंचक चल रहे हों तो दक्षिण दिशा की यात्रा से यथासंभव परहेज करना चाहिए। इसी प्रकार वायु (मिथुन, तुला, कुंभ) राशियां पश्चिम का नेतृत्व करती हैं। इन राशियों का चंद्रमा पश्चिम तथा दक्षिण दिशा की यात्रा को सुखद बनाता है। जल तत्व (कर्क, वृश्चिक, मीन) राशियां उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन राशियों का चंद्रमा उत्तर तथा पश्चिम दिशा की यात्रा फलदायी करता है।
सम्मुखे सोर्थलाभाय दक्षिणो सुखसम्पद:।
पश्चिमे प्राण सन्देहो वामे चन्द्रो धनक्षय:॥

अर्थात : सम्मुख चंद्रमा प्राय: सभी दोषों को शांत करने में सक्षम होता है। दाहिने हो तो सुख और धनलाभ तथा पीठ की ओर अथवा बाएं तरफ चंद्रवास हो तो कष्ट और धनहानि होती है। जब सपरिवार यात्रा करनी हो तो परिवार के मुखिया की राशि के आधार पर चंद्रबल का निर्धारण करना चाहिए। दिशाशूल के अनुसार सोमवार, शनिवार को पूर्व, रविवार और शुक्रवार को पश्चिम, मंगलवार व बुधवार को उत्तर तथा गुरुवार को दक्षिण दिशा का दिशाशूल होता है। अत: उक्तवारों को उन दिशाओं में यात्रा नहीं करनी चाहिए। परंतु यदि यात्रा अत्यावश्यक हो तो उस दिन का होरा के समय यात्रा नहीं करनी चाहिए अर्थात जैसे रविवार को पश्चिम दिशा में यात्रा करना जरूरी है तो रविवार की होरा में यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त रविवार को पान और घी खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर, मंगलवार को गुड़ खाकर, बुधवार को धनिया व तिल खाकर, गुरुवार को दही खाकर, शुक्रवार को दूध पीकर तथा शनिवार को अदरक या उड़द खाकर प्रस्थान किया जा सकता है।
योगिनी का भी यात्रा में विशेष विचार किया जाता है। तिथि विशेष के आधार पर दिशाओं में योगिनियों का वास माना जाता है। योगिनी बाएं तथा पीठ पीछे होने से यात्रा शुभ होती है। प्रतिपदा तथा नवमी तिथियों को योगिनी का वास पूर्व दिशा में होता है। तृतीय व एकादशी को अग्निकोण (पूर्व-दक्षिण) में, पंचमी व त्रयोदशी को दक्षिण में, चतुर्थी व द्वादशी को नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में, षष्ठी व चतुर्दशी को पश्चिम दिशा में, सप्तमी व पूर्णिमा को वायव्य कोण (पश्चिम-उत्तर) में, द्वितीय व दशमी को उत्तर दिशा में तथा अष्टमी व अमावस्या को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होता है।
इन सबके अतिरिक्त यदि किसी आकस्मिक कारणवश तुरंत यात्रा करनी पड़े तो यात्रा मुहूर्त के अनुसार करें।
जोइ स्वर चले सोई पग दीजे
भरणी भद्रा एक न लीजे।
अर्थात: आपकी जिस नासिका से श्वांस तेज निकल रही हो वही कदम पहले आगे बढ़ाएं। साथ ही मानस की यह चौपाई पढ़ें।
प्रबिसि नगर कीजे सबकाजा।
हृदय राखि कोसलपुर राजा॥
अर्थात: भगवान राम को प्रणाम करके यात्रा करें आपकी यात्रा सुखद रहेगी।

Monday, May 11, 2009

मनोकामना पूर्ण करने वाली - संकष्ट चतुर्थी

संकष्ट चतुर्थी मनोकामना पूर्ण करने वाली, चतुरार्थ - धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाली तिथि के रूप में विख्यात है। भगवान श्री गणोश को प्रिय संकष्ट चतुर्थी का व्रत न केवल विघ्नों एवं बन्धनों से मुक्ति प्रदान करता है अपितु समस्त कार्यो को सिद्ध करता है।
मनुष्य को धन-धान्य, सन्तान, सुख, वैभव एवं समृद्धि की प्राप्ति कराता है। देवी गिरिजा द्वारा साक्षात् परब्रrा परमेश्वर की पुत्र रूप में प्राप्ति की कामना से बारह वर्षो तक की गई कठोर तपस्या, व्रत एवं साधना तथा ú गं गणपतये नम: महामंत्र के सतत एवं अनवरत जप के फलस्वरूप चतुर्थी के दिन मध्यान्ह में स्वर्ण कांति से युक्त गणोशजी का प्रादुर्भाव हुआ था। इसी कारण ब्रrा ने भी चतुर्थी व्रत को अतिश्रेष्ठ व्रत निरूपित किया है।
विभिन्न पुराणों में उल्लेखित कथाओं के आधार पर वरदमूर्ति भगवान श्री गणोश की आराधना से ही सृष्टि पिता ब्रrाजी के शरीर से चतुभरुज एवं चतुर्पाद युक्त सुंदर एवं तेजस्वी चतुर्थी का जन्म हुआ जिसका वाम भाग कृष्ण तथा दक्षिण भाग शुक्ल होने से दोनों पक्षों की रचना हुई।
चतुर्थी माता के शरीर के विभिन्न भागों से प्रतिपदा से पूर्णिमा एवं अमावस्या आदि तिथियों की उत्पत्ति हुई। अत: चतुर्थी को तिथियों की माता भी कहा गया है। चतुर्थी सहित समस्त तिथियों ने भगवान गणपति की आराधना की। इस कारण चतुर्थी ने वरद मूर्ति में वासस्थान प्राप्त कर वरदा (वैनायकी) को मध्याह्न् में एवं संकष्टी चतुर्थी को रात्रि में गणपति उपासना करने पर धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति के साथ वरदमूर्ति की भक्ति प्राप्ति का वरदान दिया।
व्रत करने वालों के लिए वरदा चतुर्थी में मध्याह्न् पूर्व से एवं संकष्टी चतुर्थी में सांयकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर शुचिता धारण कर गणोशजी का पूजन करने का विधान है। फिर वैदिक व पौराणिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। इसमें पुष्प, अक्षत से आह्वान एवं आसन, जल से पाद्य-जल अघ्र्य, आचमन, शुद्ध जल, पंचामृत, गंधोदक तथा पुन: शुद्ध जल एवं गंगा जल से स्नान कराना चाहिए।
यज्ञोपवीत एवं वस्त्र, गंध एवं चंदन से तिलक, अक्षत, रक्त पुष्प एवं पुष्पमाला, दूर्वा, सिंदूर, अबीर-गुलाल, हरिद्रादि, सौभाग्य द्रव्य, सुगंधित द्रव्य, धूप, दीप एवं मोदक का नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पान एवं दक्षिणा अर्पण करके, आरती तथा पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा एवं प्रार्थना के विधान से पूजा करनी चाहिए।
चतुर्थी को चंद्रोदय होने पर भगवान चंद्र का भी जल अघ्र्य एवं धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन कर चंद्रदर्शन करना चाहिए। ú गं गणपतये नम: के महामंत्र का जप करना चाहिए। उक्त चतुर्थी को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन अथवा चंद्रोदय के पश्चात पारणा करने का विधान है। चतुर्थी व्रत एवं भगवान श्री गणोश की आराधना से भक्ति, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के अतिरिक्त, धन, सम्पत्ति, वैभव, संतान, स्वास्थ्य व दीर्घायु प्राप्ति के अतिरिक्त बंधनों एवं संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है।

Tuesday, May 5, 2009

यात्रा और कुंडली

गर्मी आते ही यात्राओं की योजना बननी शुरू हो जाती है। लेकिन यात्रा से पहले अन्य सावधानियों के साथ अपनी कुंडली देखना भी न भूलें। राशियों के अनुसार ग्रह स्थिति बताती है कि किस जातक के लिए कब और कौन-सी यात्रा शुभ होगी।
समस्त ब्रांड सदैव गतिशील है। हर क्षण गति के साथ परिवर्तन होता रहता है। उस गति को जानने के लिए हमारे महर्षियों ने अनेक विधाएं खोजीं। उन विधाओं में नक्षत्र ज्ञान सर्वोपरि है। हमारे ऋषि-मुनियों ने आकाश में असंख्य तारा समूहों को देखा, उनकी गति एवं आकृतियों को जाना तो उन तारा समूहों में से विशिष्ट तारों को नक्षत्र की संज्ञा दी और जब देखा कि 27 दिनों में पुन: वही नक्षत्र क्षितिज पर प्रकट हो रहा है तो इनकी गति का आंकलन किया।
प्रोफेसर मूलर कहते हैं - ‘भारतवासी आकाश मंडल एवं नक्षत्र आदि के ज्ञान के संबंध में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं।’ भारतीय नक्षत्र ज्ञान का वर्णन वेदों में भी है। अथर्ववेद में 25 नक्षत्रों का वर्णन आता है। यजुर्वेद में 27 नक्षत्रों का वर्णन है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन समय में केवल नक्षत्र ही थे, राशियां नहीं थी।
इन नक्षत्रों के तारामंडलों को बराबर देखा गया तो इनके तारा समूहों को रेखांकित करने से जो आकृतियां बनीं, वे मेढ़ा, बेल, सिंह मछली आदि के समान रहीं। इन्हीं आकृतियों के आधार पर राशियों का निर्माण हुआ, जो अपनी आकृति के अनुसार फल देने वाली हुईं।
राशियों में भ्रमणशील ग्रहों के आधार पर पर्यटन की दिशा, दशा एवं फल- मेष>> पूर्व-उत्तर की यात्रा करना विशेष शुभ रहेगा। आपकी राशि का स्वामी मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। अत: ईशान की यात्रा सुखद एवं निरापद रहेगी।
सावधानी : आहार-व्यवहार नियंत्रित रखें। लेन-देन पूर्ण सजगता से करें।
वृषभ>> उत्तर पश्चिम की यात्रा श्रेयस्कर होगी। आपकी राशि नक्षत्रों के क्रमश: चंद्रमा, शिव एवं अदिति देवता हैं। अत: पुरातत्वीय धरोहरों को देखना श्रेयस्कर होगा।
सावधानी : आहार पर ध्यान दें। सावधानी से यात्रा करें।
मिथुन>> मृगशिरा दो चरण, आद्र्रा संपरूण एवं पुनर्वसु के तीन चरण मिलकर मिथुन राशि का निर्माण होता है। आपकी यात्रा प्राकृतिक सौंदर्य, पुरातत्व जल प्रपात और वैज्ञानिक महत्व के स्थलों की ओर हो सकती है।
सावधानी : यात्रा के दौरान आहार पर विशेष ध्यान दें।
कर्क>> आपकी राशि का अधिपति चंद्रमा है। उत्तर मध्य की यात्रा श्रेयस्कर होगी। यात्रा के समय चंद्र दिशा शूल एवं योगिनी पर विचार कर यात्रा प्रारंभ करें।
सावधानी : यात्रा के समय अपनी वाणी संयत रखें।
सिंह>> आपकी राशि में शनि का भ्रमण चल रहा है। ग्रहों के अनुसार पूर्व की यात्रा आपको सफलता दिला सकती है। सहयात्रियों की भूमिका विशेष होगी।
सावधानी : ड्राइवर, सहयात्री व स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
कन्या>> कन्या राशि के अधिकतर नक्षत्र एवं स्वयं राशि दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। पुरातत्वीय महत्व के स्थलों की यात्रा अच्छी होगी।
सावधानी : विवादित वातावरण का निर्माण नहीं होने दे। अधीनस्थ कर्मचारियों से सतर्क रहें। रात में यात्रा न करें।
तुला>> राशि स्वामी शुक्र पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। गोचर ग्रहों के अनुसार आपकी यात्रा लंबी हो सकती है। स्वाति नक्षत्र के जातक वायुयान यात्रा कर सकते हैं। यात्रा में पूर्ण आमोद-प्रमोद होगा।
सावधानी : यात्रा के दौरान खान-पान व खरीदारी में बहुत सावधान रहें। सहयात्रियों से भी सजग रहें।
वृश्चिक>> राशि स्वामी मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में दक्षिण की लघु यात्रा व उत्तर की वृहद यात्रा संभावित है, जिसमें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि युक्त तथा धार्मिक यात्रा की संभावनाएं प्रबल हैं। सन्मुख चंद्र में यात्रा करना शुभ रहेगा।
सावधानी : यात्रा के दौरान सामान पर सतर्कता, लेन-देन व अपने महत्वपूर्ण कागजों की हिफाजत जरूरी है।
धनु>> राशि स्वामी बृहस्पति उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ऐसे में आपकी सुदूर यात्रा हो सकती है, जो वायु मार्ग से भी संबंध रख सकती है। धर्म, इतिहास, पुरातत्व एवं शोध संस्थानों की यह यात्रा आपको उल्लासित करने वाली होगी।
सावधानी : विवाद न करें। निम्न वर्ग व असामाजिक तत्वों से सावधान रहें।
मकर>> राशि का स्वामी शनि पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। पूर्व की यात्रा आपके लिए सुखद हो सकती है। लघु यात्रा विशेष फलदायी होगी।
सावधानी : यात्रा के दौरान संयमित रहें, मितव्ययता का ध्यान रखें, साथ ही निश्चित कार्ययोजना का अनुसरण करें।
कुंभ>> राशि पश्चिम दिशा तथा ताराशीश भी पश्चिम दिशा को चिन्हित करता है। गोचर के अनुसार लंबी यात्रा जलमार्ग की हो सकती है। आप अपने वर्चस्व एवं व्यापार का विकास करने में सफल हो पाएंगे। अत्याधुनिक उपकरणों की खरीदी पर व्यय संभव है। परिवार के लिए कुछ स्थायित्व भी होगा। महत्वपूर्ण लोगों का संपर्क कार्यक्षेत्र में नए आयामों को मूर्त रूप दे सकेगा। आत्मीयजनों के साथ यात्रा बहुमुखी विकास करेगी।
सावधानी : वाणी को संयमित रखें, आवश्यकतानुसार ही खर्च करें, संक्रमण संबंधी व्याधि संभव है।
मीन>> उत्तर दिशा को प्रभावशील बनाने वाली यह राशि जलतत्व एवं चंचल स्वभाव की है। गोचर अनुसार उत्तर पूर्व पर्वतीय क्षेत्र उद्यान, जल एवं प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर संबंधी स्थलों की यात्रा संभव है जो आध्यात्मिक हो सकती है। संत समागम एवं देवदर्शन पूर्ण यह यात्रा आप में आध्यात्मिक चेतना का संचार करने वाली होगी। साथ ही पुरातत्वीय महत्व वाले स्थलों एवं स्मारकों का दर्शन आपके व्यवहार में नवीनता लाने में समर्थ है। संपूर्ण परिवार के साथ की गई आपकी यात्रा विशिष्ट फल प्रदान करने वाली होगी। होगी। सम्मुख चंद्र में की गई यात्रा आपको विशिष्ट फल देगी।
सावधानी : खान-पान, आवास एवं लेन-देन में सतर्कता रखें। यात्रा के दौरान वाणी संयमित हो।
मेष राशि के जातकों के लिए उत्तर-पूर्व की यात्रा विशेष शुभ फल प्रदान करने वाली होगी। वृषभ राशि के नक्षत्रों के देवता क्रमश: चंद्रमा, शिव एवं अदिति हैं। अत: उन जातकों के लिए उत्तर-पश्चिम में पुरातत्वीय धरोहरों की यात्रा श्रेयस्कर होगी।