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Sunday, October 11, 2009

आप कैसी लक्ष्मी चाहते हैं - श्रीमती सविता

लक्ष्मी दो प्रकार से आती हैं एक गरुड़ वाहनी जो भगवान विष्णु के साथ आती हैं। यह सद्कर्म से अर्जित की गई लक्ष्मी के रूप में आती हैं। इस लक्ष्मी के आने पर व्यक्ति के कार्य, व्यवहार, आचरण में कहीं कोई कमी नहीं झलकती है बल्कि वह विनम्रता से संपन्न होकर समाजसेवी, परोपकारी, दरिद्र नारायण की सेवा करने वाला होता है। उसकी लोकप्रियता समाज-देश में बढ़ती ही चली जाती है। इसके विपरीत उल्लू वाहिनी लक्ष्मी का आगमन अनैतिक कर्म के द्वारा होता है।
उसके आने के साथ ही उल्लू का आगमन भी घर में हो जाता है। फलस्वरूप उस व्यक्ति में तामसी प्रवृत्ति वाले दुगरुण भी आते हैं। जिस प्रकार उल्लू रात में जागता है एवं दिन में सोता है, ठीक उसी प्रकार वह भी देर से उठने एवं देर रात तक कार्य करने में प्रवृत्त हो जाता है। ऐसे जातकों की संतान भी संस्कार विहीन हो जाती है। वैसे भी शास्त्रों में कहा गया है कि अनैतिकता से प्राप्त की गई सफलता व समृद्धि लंबे समय तक साथ नहीं देती है।
लक्ष्मी की परिभाषा में आमजन केवल धन को ही मानते हैं जबकि लक्ष्मी आठ प्रकार की होती हैं - आद्य लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, सौभाग्य लक्ष्मी, अमृत लक्ष्मी, काम लक्ष्मी, सत्य लक्ष्मी, भोग लक्ष्मी, योग लक्ष्मी। जैसा कि नाम से ही अर्थ स्पष्ट हो रहा है। ये सभी लक्षण लक्ष्मीवान के होते हैं अर्थात उपरोक्त में से एक भी लक्ष्मी व्यक्ति को समर्थ एवं सुखी बना सकती है।
अत: व्यक्ति को धन की चाह के बजाय आदर्श परिवार की ओर उन्मुख होना चाहिए ताकि जीवन में सभी सुख मिल सकें और वह उनका उपभोग भी कर सके। लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा है - सत्य, दान, व्रत, तप, धर्म, पराक्रमी, सरल व्यक्ति के यहां मैं निवास करती हूं तथा जहां आलस्य, निद्रा, असंतोष, अधर्मी, संतान का पालन विधिवत न हो रहा हो, उस स्थान को मैं छोड़ देती हूं।
लक्ष्मी पानी की भांति चंचल होती हैं। फिर भी लक्ष्मी को स्थायी रूप से रोकने के लिए स्थायी प्रयास प्रतिवर्ष करने पड़ते हैं। दीपावली के दिन लक्ष्मीजी की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। शुभ मुहुर्त में एक कंबल के आसन पर बैठ कर सम्मुख पाटे पर पीले या लाल वस्त्र पर पीले चावल रखकर उस पर श्रीयंत्र की स्थापना करें। दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती जलाएं, मन में श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी का ध्यान करें।
आह्वान हेतु चावल चढ़ाएं, फिर श्रीयंत्र को जल से उसके बाद पंचामृत से, पुन: जल से स्नान कराएं। पुन: पटिए पर स्थापित करें। केसर, चंदन, कंकू, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, सिंदूर, अक्षत, फूल, वस्त्र, सेंट, दूर्वा, धूप, दीप, बेसन की मिठाई, फल, सूखा मेवा, लोंग, इलायची, दक्षिणा भेंट करें। पश्चात निम्न मंत्र की तीन माला का जाप करें।
ú यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये धन धान्य मे समृद्धि देहि दापय स्वाहा: जाप पूर्ण होने पर जल छोड़ें, दीपक, कपूर से आरती करें। आरती लें, प्रणाम करें एवं प्रार्थना करें कि हे माता आप कुबेर के खजाने ऋषि-सिद्धि सहित यहां विराजमान रहें। श्रीयंत्र को स्नान कराया हुआ जल अपने घर-कार्यालय और प्रतिष्ठान में छिड़कें।

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