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Saturday, January 9, 2010

रवि मंत्र के जाप से दूर होती है दरिद्रता

जीवन में धन की कमी या निर्धनता को दरिद्रता कहते हैं। यह एक ऐसा दोष है, जो न केवल मानव जीवन में पग-पग पर कठिनाइयां पैदा करता है, बल्कि यह व्यक्तित्व एवं व्यक्ति की छवि को विकृत भी कर देता है।

‘दारिद्रदोषी गुणराशिनाशी’, दरिद्रता के इस परिणाम का प्रतिपादन करने वाले चिंतकों ने इसकी विवेचना करते हुए इस तथ्य को रेखांकित किया है कि ‘दरिद्रता की मानसिकता का सबसे बड़ा लक्षण आत्मविश्वास का अभाव है, जो दरिद्री की दुविधा, असुविधा, किंकर्तव्यविमूढ़ता एवं निष्क्रियता के भंवरजाल में फंसा होता है। वस्तुत: दरिद्रता के दर्द की टीस संसार में सबसे अधिक दुखदाई है।

दरिद्रता के योग
वैदिक ज्योतिष के प्रवर्तक महर्षि पाराशर के अनुसार व्यक्ति की जन्मकुंडली में त्रिकोणस्थान धन-संपदा एवं लक्ष्मी का स्थान तथा त्रिक (6, 8 एवं १२वां) स्थान दुख एवं दरिद्रता का होता है। व्यक्ति की कुंडली में केमद्रुम, रेका, कालसर्प भिक्षु एवं दरिद्री योग जीवन में विपन्नता देते हैं।

महर्षि पाराशर के अनुसार दरिद्रता में जातक के जीवन में हीनता एवं दीनता लगातार बनी रहती है। दरिद्रता के योगों में दो बातें प्रमुख होती हैं,
1. योग के प्रमुख ग्रह का त्रिकोणोश एवं शुभ ग्रह से युत-दृष्ट न होना।
2. उसका त्रिकेश एवं पापग्रह से युत-इष्ट होना या त्रिक स्थान में बैठना।

पाराशरीय ज्योतिष के अनुसार दरिद्रता के सूचक कुछ प्रमुख योग इस प्रकार हैं।

लग्न में चर राशि एवं चर नवांश हो और उस पर शनि तथा नीच राशिगत गुरु की दृष्टि हो।
लग्नेश निर्बल, धनेश अस्तंगत और केंद्र में पापग्रह हो।
धन स्थान में पापग्रह हो और उस पर पापग्रह की दृष्टि हो तथा धनेश निर्बल हो।
धनेश त्रिक (6, 8 एवं १२वें) स्थान में हो और पापग्रह धन स्थान में हो।
भाग्येश एवं कर्मेश त्रिक में और पापग्रह लग्न में हो।
लग्नेश, व्ययेश एवं सूर्य साथ-साथ हो और पापग्रह से दृष्ट हो।
धनेश व्यय स्थान में, व्ययेश धन स्थान में हो या भाग्येश अष्टम में और अष्टमेश भाग्य स्थान में हो।
भाग्येश एवं कर्मेश निर्बल होकर पापग्रह के साथ हों और लग्नेश त्रिक में हो।
पंचमेश एवं नवमेश षष्ठ या व्यय में और लग्नेश पाप प्रभाव में हो।

दरिद्रतानाशक रवि मंत्र
दरिद्रता के प्रभाववश व्यक्ति में आई हीनता, निष्क्रियता या किंकर्तव्यविमूढ़ता को नियंत्रित कर उसको कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ाने में आत्मविश्वास की भूमिका सबसे प्रमुख है। यह आत्मविश्वास रवि मंत्र के अनुष्ठान से बढ़ता है। रवि मंत्र दरिद्रता को दूर करने की रामबाण दवा है।
रवि मंत्र ऊं ह्रीं घृणिं सूर्य आदित्य श्रीं।

विनियोग
अस्य श्री सूर्य मंत्रस्य भृगऋषि: गायत्रीछन्द:, भगवान सूर्योदेवता, ह्रीं बीजं श्रीं शक्ति: सर्वार्थ सिद्धये जपे विनियोग:।

ऋष्यदिन्यास
ऊं भृगवे ऋषये नम:, शिरसि।
ऊं गायत्री छन्दसे नम:, मुखे।
ऊं सूर्याय देवतायै नम:, हृदि।
ऊं ह्रीं बीजाय नम:, गुह्ये।
ऊं श्रीं शक्तये नम:, पादयो:।

षडड्ग न्यास
सत्यतेजोज्वालामणो हुं फट् स्वाहा, हृदयाय नम:।
ब्रrातेजोज्वालामणो हुं फट् स्वाहा, शिरसे स्वाहा।
विष्णुतेजोज्वालामणो हुं फट् स्वाहा, शिखायै वषट्।
रुद्रतेजो ज्वालामणो हुं फट् स्वाहा, कवचाय हुम्।
अग्नितेजोज्वालामणो हुं फट् स्वाहा, नेत्रत्रयाय वौषट्।
सर्वतेजो ज्वालामणो हुं फट् स्वाहा, अस्त्राय फट्।

ध्यान
शोणाम्भोरुहसंस्थितं त्रिनयनं वेदत्रयी विग्रहं
दानाम्भोजयुगाभयानिदधतं हस्तै: प्रवालप्रभम्।
केयूराड्ंगदहारकंकणधरं कर्णोल्लसत्कुण्डलं,
लोकोत्पत्ति विनाशपालनकरं सरूय गुणाब्धिं भजे।।
अर्थात रक्तकमल पर विराजमान, तीन नेत्र वाले, वेदमूर्ति, चारों हाथों में क्रमश: दानमुद्रा, कमल, पद्म एवं अभयमुद्रा धारण करने वाले, प्रवाल जैसी आभा वाले, केयूर अड्ंगद, हार एवं कंकण आदि आभूषणों से सुशोभित, कानों में कुंडल धारण करने वाले, जगत की उत्पत्ति, पालन एवं विनाश करने वाले, भगवान सूर्य का मैं ध्यान करता हूं।

विधि
नित्य नियम से निवृत्त होकर आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर, भस्म का त्रिपुण्ड या तिलक लगाएं। आचमन एवं प्राणायाम कर चौकी या पट्टे पर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर स्वर्ण पत्र या भोजपत्र पर रक्तचंदन एवं अनार की कलम से श्री सूर्यपूजन यंत्र लिखकर और स्थापित कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर पंचोपचार (गंध-अक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य) से यंत्र का पूजन कर, एकाग्रतापूर्वक उक्त मंत्र का जप करना चाहिए। इस मंत्र के अनुष्ठान में जप संख्या १0 लाख तथा लघु अनुष्ठान में सवा लाख है।

इस मंत्र के अनुष्ठान में उगते सूर्य को द्वादश नमस्कार, अघ्र्यदान एवं संध्यावंदन करना तथा जप के बाद आदित्य हृदयस्तोत्र का पाठ करना विशेष फलदायक होता है। इस मंत्र के अनुष्ठान से साधक में आत्मविश्वास का पुनर्विकास होता है, जिससे उसके जीवन में सफलता के नए द्वार खुलते हैं।


प्रो. शुकदेव चतुर्वेदी


2 comments:

  1. panditji surya ke dvaadas naam tathaa arghya dene kii vidhii yathaa kab tatha jal me de yaa jamiin par isakaa bhii kabhii jikr kare
    achhii prastuti ke liye aabhaar

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  2. सूर्य के १२ नाम:

    सूर्य
    रवि
    आदित्य
    भास्कर
    विराट
    अलोक
    दिवाकर
    वैवस्वत
    पूषा
    भानु
    सविता
    गृहपति



    अर्घ्य जल में दें तो सबसे अच्छा नहीं तो जमीं पर भी दे सकते है।

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