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Sunday, December 13, 2009

शक्ति की उपासना नवदुर्गा

निगम एवं आगम के तत्ववेत्ता ऋषियों के अनुसार वह परमतत्व आदि, मध्य एवं अंत से हीन है। वह निराकार, निर्गुण, निरुपाधि, निरञ्जन, नित्य, शुद्ध एवं बुद्ध है। वह एक है, विभु है, चिदानन्द है, अद्भुत है, सबका स्वामी एवं सर्वत्र है। फिर भी वह लीला के लिए अनेक रूपों में अवतरित होकर लोक कल्याण करता है।

शक्तितत्व : देवी भागवत के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवती से पूछा - ‘कासि त्वं महादेवि’ -हे महादेवी, आप कौन हैं? तब देवी ने उत्तर दिया - ‘मैं और ब्रrा - हम दोनों सदैव या शाश्वत एकत्व हैं। जो वह है, सो मैं हूं और जो मैं हूं, सो वह है। हममें भेद मानना मतिभ्रम है।

शक्ति की उपासना का प्रयोजन :

संसार का प्रत्येक प्राणी भय, भ्रांति एवं अभाव से किसी न किसी मात्रा में ग्रस्त रहता है। परिणामस्वरूप वह संसार में घात-प्रतिघात से त्रस्त रहता है। शाक्तागमों के अनुसार शक्ति सांसारिक दु:खों के दलदल में फंसे व्यक्ति को उससे निकालकर सुख, शांति और अंत्तोगत्वा मुक्ति देती है।

अत: उसकी कृपा पाने के लिए उसी की उपासना करनी चाहिए। वह स्वयं एक एवं अद्वितीय होते हुए भी अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए कभी महालक्ष्मी, महाकाली या महासरस्वती के रूप में अवतरित होती है तो कभी काली, तारा, षोडशी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, भुवनेश्वरी एवं कमला - इन दशमहाविद्याओं के रूप में वरदायिनी होती है और वही आद्याशक्ति अपने उपासकों की मनोकामना पूर्ति के लिए शैलपुत्री, ब्रrाचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री - इन नवदुर्गाओं के रूप में प्रकट होती है।

वस्तुत: इस जगत का सृजन, पालन एवं संहार करने वाली वह आद्याशक्ति एक ही है। उसके लोककल्याणकारी रूप को दुर्गा कहते हैं। तंत्रागम के अनुसार वह संसार के प्राणियों को दुर्गति से निकालती है, अत: ‘दुर्गा’ कहलाती है।

मंत्र, तंत्र एवं यंत्रों के माध्यम से उस शक्तितत्व की साधना के रहस्यों का उद्घाटन करने वाले ऋषियों का मत है कि उसकी उपासना से पुत्रार्थी को पुत्र, विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन एवं मोक्षार्थी को मोक्ष मिलता है।

शक्ति उपासना का काल -

नवरात्रि की मूल संकल्पना एवं आधारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाले वैदिक ज्योतिष के प्रणोताओं ने हमारे एक वर्ष को देवी देवताओं का एक ‘अहोरात्र’ (दिन-रात) माना है। ज्योतिष शास्त्र के कालगणना के नियमों के अनुसार मेष संक्राति को देवी-देवताओं का प्रात:काल, कर्क संक्राति को उनका मध्याह्न् काल, तुला संक्राति को उनका सायंकाल तथा मकर संक्राति को उनका निशीथकाल होता है।

इसी आधार पर शाक्ततंत्रों ने मेष संक्राति के आसपास आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से वासंतिक नवरात्रि और मकर संक्राति के आसपास आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि और मकर संक्राति के आसपास आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि और मकर संक्राति के आसपास माघ शुक्ल प्रतिपदा से पुन: गुप्त नवरात्रि का निर्धारण किया गया है। इन नवरात्रियों को शक्ति की उपासना के लिए प्रशस्त माना गया है।

इन चारों नवरात्रियों में आद्या शक्ति की साधना एवं उपासना की महिमा अपरंपार है। यही कारण है कि आसाम, बंगाल एवं बिहार से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक पूरे पूर्वी भारत में इन दिनों ‘दुर्गापूजा’ का महोत्सव पूरी श्रद्धा, भक्ति एवं धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि में शक्ति उपासना का फल : शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजा महापूजा कहलाती है।

इस समय में श्री दुर्गासप्तशती का पाठ, मंत्र का जप, दश महाविद्याओं की साधना, ललिता सहस्रनाम या दुर्गा सहस्रनाम का पाठ, नवरात्रि का व्रत, दुर्गा पूजा एवं कन्या पूजन करने से मनुष्य सभी बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र-पौत्र का सुख प्राप्त करते हैं।


प्रो. शुकदेव

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