सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु को नवग्रह कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य-चंद्रमा को नक्षत्रों का स्वामी, मंगल को पृथ्वी पुत्र, बुध को चंद्रमा का पुत्र, बृहस्पति को देव गुरु, शुक्र को दैत्य गुरु, शनि को सूर्य पुत्र एवं राहु-केतु को पृथ्वी का छाया पुत्र माना गया है।
भारतीय संस्कृति में नवग्रह-उपासना का उतना ही महžव है, जितना कि भगवान विष्णु, शिव तथा अन्य देवोपासना का है। जन्म से लेकर उपनयन, विवाह आदि संस्कारों में नवग्रह पूजन का विशेष महžव है।
यज्ञानुष्ठान की क्रिया नवग्रह स्थापना के बिना अपूर्ण ही रहती है क्योंकि यज्ञरक्षा नवग्रहों द्वारा ही होती है। अत: रक्षा-विधान के लिए शास्त्रीय आदेश है कि गणोश, सरस्वती, क्षेत्रपाल की स्थापना के साथ-साथ नवग्रहों की भी स्थापना करनी चाहिए और उन्हें पूजन करके प्रणाम करना चाहिए।
जीवन के संपूर्ण सुख-दुख, लाभ-हानि और जय-पराजय आदि जैसे सभी विषय इन नवग्रहों पर आधारित होते हैं। इसका कारण 27 नक्षत्रों और 12 राशियों पर ये ग्रह भ्रमण करते रहते हैं, जिससे ऋतुएं, वर्ष, मास और दिन-रात बनते हैं।
नवग्रह अपनी-अपनी गति के अनुरूप मंद अथवा तीव्र चाल से एक-एक राशि को पार करते रहते हैं। जब ये सप्तग्रह सूर्य के समीप अंशों में एक ही राशि पर होते हैं तो अस्त माने जाते हैं। इन राशियों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ व मीन हैं।
नाम के अनुसार इन्हीं राशियों पर स्थित ग्रहों की चाल देखकर बताया जाता है कि अमुक व्यक्ति के लिए अमुक समय कैसा है। इसे ही जानने के लिए बारह राशियों हेतु नवग्रहों को इनका स्वामी चुना गया है।
मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी-मंगल, वृष व तुला राशि का स्वामी-शुक्र, मिथुन व कन्या राशि का स्वामी-बुध, कर्क राशि का स्वामी-चंद्रमा, सिंह राशि का स्वामी-सूर्य, धनु व मीन राशि का स्वामी- गुरु और मकर व कुंभ राशि का स्वामी-शनि को माना गया है।
जन्म कुंडली या वर्ष कुंडली में कौनसा ग्रह किस स्थान में बैठा है, उसका फल क्या मिलेगा? उसी अनुसार उस ग्रह की शांति के लिए पाठ-जप करना, रत्न धारण करना व वस्तुओं का दान करना चाहिए, तभी फल प्राप्त होगा।
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