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Sunday, December 6, 2009

कर्मो से बनाएं मंद ग्रहों को बलशाली

वैदिक ज्योतिषbook के अनुरूप लाल किताब में भी कर्म की महत्ता है। संचित कर्म और भाग्य का गहरा संबंध है और कर्मो का फल मनुष्य को अवश्य भोगना पड़ता है। कुंडली के ग्रहों का शुभ-अशुभ प्रभाव जन्मकुंडली में उनकी स्थिति, बल, दृष्टि तथा प्रभाव के आधार पर निर्धारित होता है।

लाल किताब ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति और दृष्टि आदि के आधार पर मंदा और शुभ फल देने का वर्णन है। मंद ग्रहों के घर में या राहु, बुध या शुक्र के साथ मंदा माना गया है। चंद्रमा के साथ उसके शत्रु ग्रह जैसे राहु, केतु या शनि हों या किसी प्रकार का दृष्टि संबंध हो तो भी चंद्र का फल अशुभ हो जाता है।

लाल किताब के अनुसार हर ग्रह के दो असर होते हैं - शुभ और अशुभ। जब कोई ग्रह ठीक हालत में हो तो वह आपके लिए शुभ असर देता है और वही ग्रह यदि अपने कर्मा या दृष्टि प्रभाव से मंदा असर दे तो कष्टप्रद बन जाता है। कोई भी ग्रह चाहे जितना भी शुभ क्यों न हो, आजीवन शुभ फल नहीं दे सकता और इसी प्रकार कोई ग्रह कितना भी अशुभ क्यों न हो, जीवन भर अशुभ फल नहीं देता।

इसीलिए लाल किताब में वर्षफल कुंडली तथा जन्मकुंडली दोनों के तालमेल से ही उपाय बताए जाते हैं। सिर्फ वर्षकुंडली या जन्मकुंडली देखकर कोई भी उपाय करना ठीक नहीं होता, क्योंकि यदि जन्मकुंडली के अशुभ ग्रह उस साल वर्षफल में शुभ स्थान में स्थित हों तो उनके उपाय की जरूरत नहीं होती।

इन सिद्धांतों के आधार पर यदि कोई ग्रह नेक हालत में भी हो तो भी कई बार देखा गया है कि व्यक्ति को उसके अच्छे प्रभाव नहीं मिल रहे होते और वह कष्ट में पड़ जाता है। यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि कुंडली का नेक ग्रह भी मंदा फल दे सकता है।

उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति का बृहस्पति लग्न में या चौथे घर में उत्तम फलदायक है और अन्य ग्रहों से युति, मित्रता, शत्रुता और दृष्टि सिद्धांत द्वारा भी नेक हालात में है, लेकिन वह व्यक्ति अपने पिता, दादा या आदर योग्य व्यक्ति की अवहेलना और निरादर करे तो उसका उत्तम बृहस्पति भी निष्फल हो जाता है। ऐसे में जातक को मानहानि, अप्रतिष्ठा, पुत्र-सुख की कमी, शत्रुओं द्वारा हानि जैसे कष्ट संभव हैं।

इसी प्रकार अपने भाइयों के साथ बेईमानी करने वाले व्यक्ति का मंगल नीच हो जाता है और उत्तम मंगल भी नीच प्रभाव देना आरंभ कर देता है, लेकिन मंदे मंगल वाला व्यक्ति भी यदि अपने भाइयों के साथ नरमी और प्यार का बरताव करता रहे तो नीच मंगल भी अच्छा फल देने लगता है।

शनि सातवें, दसवें और ग्यारहवें घर में उत्तम प्रभाव देता है, परंतु व्यक्ति यदि शराब, मांस, अंडे का प्रयोग करता है, झूठ बोलता है, पराई स्त्री से संबंध रखता है या किसी को धोखा देता है तो यह शनि के प्रभाव को मंदा कर देता है। शनि को मंदा करने वाली इन आदतों से दूर रहकर व्यक्ति अपने अशुभ शनि के प्रभावों से बच भी सकता है।


सुमन पंडित

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