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Tuesday, November 24, 2009

गणेश जी दूर करें वास्तुदोष - डॉ. श्रीकृष्ण

भगवान गणेश विघ्न विनाशक माने गए हैं। वास्तुपूजन के अवसर पर गणेश को प्रथम न्योता और पूजा जाता है। जिस घर में गणेश की पूजा होती है, वहां समृद्धि की सिद्धि होती है और लाभ भी प्राप्त होता है।

गणेश जी की स्थापना अपने भवन के द्वार के ऊपर और ईशान कोण में पूजा जा सकता है किंतु गणेश जी को कभी तुलसी नहीं चढ़ाएं। गणेश चतुर्थी पर विनायक की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाने से सुख मिलता है और चमकीला पन्ना चढ़ाने पर पूजक को आरोग्य मिलता है।

अन्य वास्तुप्रयोग >>>

>> यदि भवन में द्वारवेध हो तो वहां रहने वालों में उच्चटन होता है। भवन के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है। ऐसे में भवन के मुख्य द्वार पर गणोशजी की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए किंतु उसका आकार 11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए।

>> जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े, तब श्वेतार्क या सफेद मंदार की जड़ के गणेश की स्थापना करनी चाहिए। इसे सर्वार्थ सिद्धिकारक कहा गया है। इससे पूर्व ही गणेश को अपने यहां रिद्धि-सिद्धि सहित पदार्पण के लिए निमंत्रण दे आना चाहिए और दूसरे दिन, रवि-पुष्य योग में लाकर घर के ईशान कोण में स्थापना करनी चाहिए।

>> घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक उपयोगी होती है। यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पूजन लाभकारी है।

>> संयोग से यदि श्वेतार्क की जड़ मिल जाए तो रवि-पुष्य योग में प्रतिमा बनवाएं और पूजन कर अपने यहां लाकर विराजित करें। गणोश की प्रतिमा का मुख नैर्ऋत्य मुखी हो तो इष्टलाभ देती है, वायव्य मुखी होने पर संपदा का क्षरण, ईशान मुखी हो तो ध्यान भंग और आग्नेय मुखी होने पर आहार का संकट खड़ा कर सकती है।

>> पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा हो। गणोश प्रतिमा के पास अन्य कोई गणोश प्रतिमा नहीं रखें।

>> गणेश को रोजाना दूर्वा दल अर्पित करने से इष्टलाभ की प्राप्ति होती है। दूर्वा चढ़ाकर समृद्धि की कामना से ऊं गं गणपतये नम: का पाठ लाभकारी माना जाता है। वैसे भी गणपति विघ्ननाशक तो माने ही गए हैं।

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