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Monday, November 23, 2009

स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं वास्तुदोष - कुलदीप सलूजा

आजकल छोटे या बड़े भवनों की बनावट पहले के भवनों की तुलना में सुंदर व भव्य जरूर हो गई है, लेकिन आर्किटेक्ट मकानों को सुंदरता प्रदान करने के लिए अनियमित आकार को महत्व देने लगे हैं। इस कारण मकान बनाते समय जाने-अनजाने वास्तु सिद्धांतों की अवहेलना हो रही है। महिला हो या पुरुष, उनकी हर प्रकार की बीमारी में वास्तुदोष की अपनी भूमिका रहती है। वास्तुदोष के कारण घर में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के बीच असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। इस कारण वहां रहने वालों के शारीरिक व मानसिक रोगी बनने की आशंका होती है।
वैसे तो सभी दिशाएं प्रकृति की ही हैं और सभी शुभ हैं। वास्तुशास्त्र तो मात्र प्रकृति में व्याप्त सूर्य की जीवनदायी सकारात्मक ऊर्जा के श्रेष्ठ उपयोग का तरीका बताता है ताकि पृथ्वीवासी स्वस्थ, सुखद व शांतिपूर्वक जीवन जी सकें। वह भवन, जहां पर प्रात:काल की बजाय दोपहर की किरणों आती हैं वहां रहने वालों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। दोपहर के समय पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की नकारात्मक किरणों (अल्ट्रा वायलेट) होती हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदेह हैं। इसी कारण वास्तुशास्त्र में दक्षिण व पश्चिम की दीवारों को ऊंचा रखने का प्रावधान है। साथ ही इन दिशाओं में उत्तर व पूर्व की तुलना में कम खिड़की-दरवाजे रखने की सलाह दी गई है ताकि उस घर में रहने वाले सदस्य इन नकारात्मक ऊर्जा से युक्त किरणों के संपर्क में कम से कम आएं तथा ईशान दिशा में स्थित जल स्रोतों पर भी यह किरणों न पड़ सकें।
भवन के ईशान कोण में अधिक खाली जगह रखने का कारण भी सूर्य की गति ही है। जब सूर्य उत्तरायण की तरफ होता है तो दोपहर तक लाभदायक किरणों पृथ्वी पर पड़ती हैं। जब सूर्य दक्षिणायण होता है तो दोपहर के पूर्व ही हानिकारक किरणों पड़नी शुरू हो जाती हैं, क्योंकि दिन छोटे होते जाते हैं। अत: उत्तरायण काल की सूर्य की किरणों का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए ही वास्तुशास्त्र में दक्षिण की अपेक्षा उत्तर में ज्यादा खाली जगह छोड़ने की सलाह दी गई है।
जिस घर का नैऋ त्य कोण, किसी भी प्रकार से नीचा हो या वहां किसी भी प्रकार का भूमिगत पानी का टैंक, कुआं, बोरवेल, सेप्टिक टैंक इत्यादि हो तो वहां रहने वाले के असामयिक मृत्यु का शिकार होने की आशंका रहती है। ध्यान रहे वास्तुशास्त्र एक विज्ञान है। घर की बनावट में ही वास्तु अनुकूल परिवर्तन कर वास्तुदोषों को दूर किया जा सकता है। बाकी टोटकों की जरूरत नहीं है।

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