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Saturday, November 21, 2009

आपकी कुंडली में है शुभ-अशुभ योग

जन्मपत्रिका जातक के जीवन का दर्पण होती है। ग्रह और गोचर का प्रभाव सभी पर पड़ता है। ज्योतिर्विद जन्मपत्रिका देखकर ही जातक के जीवन में घटित होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की भविष्यवाणियां कर देते हैं और वे भविष्यवाणियां सत्य भी होती हैं। ज्योतिष शास्त्र मानता है कि यत् ब्रrाण्डे तत् पिण्डे अर्थात जो ब्रrांड में है, वही मानव शरीर में भी है। इससे यह सिद्ध होता है कि ब्रrांड में स्थित ग्रहों का हमारे शरीर, उसके अंगों और जीवन पर व्यापक रूप से प्रभाव पड़ता है।
किसी व्यक्ति के जीवन में बार-बार दुर्घटनाएं क्यों होती हैं और क्यों वह बार-बार मृत्युतुल्य कष्ट पाता है? निश्चय ही इन सब प्रश्नों के उत्तर जातक की जन्मपत्रिका देती है। ज्योतिष के परिप्रेक्ष्य में इसका विवेचन जरूरी है। दुर्घटनाओं में शारीरिक चोट के साथ जातक का खून भी जाता है। जहां तक रुधिर अर्थात खून का प्रश्न है, इसका स्वामित्व चंद्र के पास माना जाता है। कुंडली में चंद्र यदि मंगल द्वारा दूषित हो तो उस व्यक्ति का रक्त नियमित रूप से दूषित होता है। कुंडली में चंद्र क्षीण हो तो रक्ताभिसरण ठीक नहीं होता। ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार रक्त के निर्माण पर मंगल का स्वामित्व है। इस तरह हम मान सकते हैं कि खून का निर्माण और शरीर का रख रखाव मंगल और चंद्रमा दोनों ही करते हैं और दोनों के पास ही उसका कारकत्व होता है।
ज्योतिष के अनुसार मंगल मांगलिक ग्रह है। जन्मपत्रिका में मंगल अच्छी स्थिति में हो तो इसके सभी शुभ परिणाम मिलते हैं। जातक के पास अथाह भूमि, भवन, वाहन आदि होते हैं और वह सेना और पुलिस में अच्छे पद पर आसीन होता है। ऐसा जातक अच्छा सर्जन भी होता है। बड़े ऑपरेशन, अपेंडिक्स, गंडमाला, कैंसर, प्लूरेसी, मूत्रकच्छ, टॉन्सिल, विषम ज्वर, मृत्यु, शरीर पर लाल धब्बे पड़ना, शल्य चिकित्सा, खून बहना, घाव, दुर्घटना, हत्या और खून खराबे का अध्ययन मंगल से किया जाता है।
जन्मपत्रिका में शनि अच्छा हो तो जातक कर्मयोगी बनता है। वह बड़े-बड़े कल-कारखानों का मालिक होता है। वह इंजीनियर, न्यायाधीश बनता है। अच्छा शनि जातक को गुप्तचर विभाग की सेवाओं में प्रवीण बनाता है। उसे अच्छा मंत्र मर्मज्ञ भी बनाता है और जातक को आध्यात्मिक क्षेत्र में शिखर तक पहुंचाता है। शनि अशुभ स्थिति में हो तो दु:ख, अनादर, मृत्यु संकट व गरीबी की स्थितियां पैदा करता है। पुरानी और लाइलाज बीमारियों का प्रतिनिधित्व भी शनि ही करता है। यह निराशा भी देता है।
जन्मपत्रिका में ग्रहों की आपसी युतियां ही ग्रहों को शुभ-अशुभ बनाती हैं। यदि ग्रहों की युतियां अच्छी हों तो जातक जीवन में शुभ फल प्राप्त करता है और स्वस्थ रहकर उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है। इसके विपरीत ग्रहों की युतियां अशुभ हांे तो जातक अस्वस्थ रहकर विभिन्न प्रकार के कष्ट भोगता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जातक की जन्मपत्रिका में सभी ग्रह अपने से सातवें स्थान और उसमें बैठे ग्रहों को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। मंगल जिस राशि में बैठता है, उससे सातवें भाव के अतिरिक्त चतुर्थ और आठवें भाव और उसमें बैठे ग्रहों को भी अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसी प्रकार शनि भी अपने से सातवें भाव के अतिरिक्त तृतीय और दसवें भाव और उसमें बैठे ग्रहों को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
शनि और मंगल आपस में एक-दूसरे से शत्रुता का भाव रखते हैं। मौत का कारकतत्व शनि के पास है और खून का कारकतत्व मूल रूप से मंगल के पास है। जन्मपत्रिका में शनि और मंगल की युति जैसे एक ही भाव में दोनों का साथ बैठना, परस्पर का दृष्टि संबंध बनना, ष्डाष्टक योग बनाना दुर्घटनाओं का मूल कारण है। जब गोचर में शनि और मंगल की अशुभ युतियां बनती हैं जैसे एक ही भाव में दोनों ही एक साथ बैठते हैं अथवा आपस में ष्डाष्टक योग बनाते हैं, तब भी इन युतियों व योगों का अशुभ प्रभाव देखने को मिलता है।
गोचर में जब ऐसे योग बनते हैं तो उस योग की अवधि में दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। इस युति काल में दुर्घटनाओं में एक-दो नहीं, बल्कि समूह में मृत्यु होती है। प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। देशों में युद्ध की स्थिति बनती है। आतंकी घटनाओं में भी इस अवधि में जान-माल का ज्यादा नुकसान होता है। 

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