प्राचीन परंपराओं में हमारा धर्म पूरी तरह विज्ञान पर आधारित था। उस समय योग, मंत्र, तंत्र, यंत्रों द्वारा असाध्य रोगों का उपचार किया जाता था। यह विज्ञान समय के साथ बढ़ते भौतिकवाद एवं हमारी नीरसता के कारण इतिहास बनकर रह गया है। हजारों वर्ष पूर्व शास्त्रों में लिखा गया है कि उज्जैन नगरी पृथ्वी की नाभि है (मध्यबिंदु)।
आज जब अमेरिका के नासा ने अपने सैटेलाइट से चित्र भेजकर ऐसी कई प्राचीन, भारतीय मान्यताओं को प्रमाणित किया है तो प्रश्न यह उठता है कि हजारों वर्ष पूर्व वैदिक काल में यह कैसे पता लगाया गया? आज पूरा विश्व जड़ी-बूटियों से इलाज करने की होड़ में है, क्योंकि आज के विज्ञान ने जिन दवाइयों को खोजा है वे एक रोग को दबाकर दूसरे अनेक साइड इफेक्ट पैदा कर रहे हैं।
क्यों आज विश्व हर्बल चिकित्सा एवं औषधियों के पीछे भाग रहा है? भारत की खानपान पद्धति हर मौसम एवं प्रकृति के अनुसार थी। आज तो खानपान दूषित है। हमारी सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक परंपराओं के पीछे अनेक रहस्य हैं।
आज दंतकथाओं या रामायण की कहानियों में भगवान श्रीराम के समय में लंका तक जो पुल का निर्माण का उल्लेख होता है वही पर सैटेलाइट चित्र द्वारा पुल होने का प्रमाण मिलता है। जहां तक मंत्र शक्ति और उससे चिकित्सा का प्रश्न है, कैंसर, एड्स, लकवा एवं असाध्य रोगों में इसका (मंत्रों का) चमत्कारिक लाभ होता है। रुद्रयामल तंत्र में ‘इन्द्राक्षी स्त्रोत’ नामक स्त्रोत कैंसर, एचआईवी, लकवा जैसे रोगों पर प्रभावशाली सिद्ध हुआ है।
निरंतर पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ रोजाना जितना पाठ कर सके करें एवं अपना सारा दु:ख माता इन्द्राक्षी को सौंप कर पूर्ण निष्ठा से यह पाठ करें। अनेक रोगों में जहां चिकित्सा विज्ञान असहाय है, वहां यह मंत्र पूर्ण प्रभावशाली प्रमाणित हुआ है। सोमवार को भगवान शिव को मक्खन में काले तिल मिलाकर अभिषेक भी करें।
Om namo bhagwati indrakshey mahalakshmey serjan vashmey kuru serv dusht grahnam stambhaniye swaha. Is mntr ka kya mhatv h or kitna jaap kiya jata h
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