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Tuesday, November 24, 2009

कैसे जानें इष्टकाल को - पं. विनोद राजाभाऊ रावल

ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त करने में पंचांगों की जानकारी जितनी अधिक होगी, उतना सही एवं सटीक ज्ञान प्राप्त होगा। जैसा कि पूर्व में उल्लेखित किया गया था कि पंचांग में लघु शब्द-अक्षर का उपयोग अधिक होता है तथा ज्योतिष के साहित्य में भी कई ऐसे शब्द उपयोग में आते हैं जिन्हें समझने में कठिनाई महसूस होती है। कई बार उस शब्द के भ्रम में अर्थ ही नहीं समझ पाते हैं, जैसे सूर्यास्त (सू.अ.) सूर्य के अस्त होने का समय, सूर्योदय (सू.उ.) सूर्य के उदय होने का समय, दिनमान (दि.मा.) सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच के समय को दिनमान कहते हैं। यह समय पंचांग में सामान्यत: घटी एवं पल में दिया जाता है।

रात्रिमान सूर्यास्त से अगले दिन के सूर्योदय के मध्य का समय रात्रिमान कहलाता है। चंद्रस्थिति (च.स्थि.) या चंद्र सचार से लिखा रहता है अर्थात चंद्रमा अमुक राशि में इस समय प्रवेश करेगा।

सर्वक्षय नक्षत्र का मान अर्थात अमुक नक्षत्र अमुक दिन में इतनी घटी एवं इतने पल है।

सोम्यायन सूर्य की उत्तरायण स्थिति को सोम्यायन कहते हैं।

याम्यायनं सूर्य के दक्षिणायन की स्थिति को याम्यायनं कहते हैं। मकर संक्राति (14-15 जनवरी) से सूर्य उत्तरायण होता है तथा कर्क संक्राति (16-17 जुलाई) से मकर संक्राति तक सूर्य दक्षिणायन होता है।

प्रात: सूर्य स्पष्ट (प्रा. सू. स्प.)- प्रात:काल सूर्य की स्थिति जो कि राशि/अंश/कला/विकला(11/29/44/42) में उल्लेखित रहती है। पंचांग में दैनिक या साप्ताहिक ग्रह स्पष्ट रहते हैं। साथ ही दैनिक लग्न सारिणी भी दी जाती है। इसमें प्रवेश अथवा समाप्ति के समय का अवश्य उल्लेख रहता है।

जातक यह शब्द ज्योतिष के साहित्य में अधिक आता है। जिस जन्म लिए बालक-बालिका की चर्चा की जा रही है उसे जातक कहते हैं।

इष्टकाल सूर्योदय से किसी निश्चित (अभीष्ट) समय। घटी पल को इष्टकाल कहेंगे जैसे किसी जातक का जन्म समय दोपहर 2.10 है तो प्रात: सूर्योदय से दोपहर 2.10 तक की समय (जो कि घटी पल में हो) इष्टकाल होगा।

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