नौकरी की चयन-प्रक्रिया में इंटरव्यू या साक्षात्कार की निर्णायक भूमिका है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति विशेष की मानसिक एवं बौद्घिक क्षमता का मूल्यांकन कर यह पता लगाया जाता है कि वह उस दायित्व को भलीभांति निभा पाएगा या नहीं? इस पूरी प्रक्रिया में प्राय: १क् से २५ मिनट का समय लगता है।
सफलता का सूत्र:
इंटरव्यू में भाग लेने वाले प्राय: सभी प्रतिभागियों की शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव विज्ञापित पद के अनुरूप होते हैं, किंतु इंटरव्यू के समय जो व्यक्ति प्रश्नों का पूरे धैर्य एवं विश्वास के साथ उत्तर देता है, उसे सफलता मिलती है।
इंटरव्यू में सफलता एवं असफलता के योग:
वैदिक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव धैर्य का, दशम भाव विश्वास का, पंचम भाव बुद्धि का और नवम भाव भाग्य का सूचक होता है। ग्रहों में बुध बुद्धि का, गुरु धैर्य व विश्वास का तथा चंद्रमा इच्छाशक्ति का सूचक होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में चतुर्थेश, दशमेश, पंचमेश एवं नवमेश में आपस में संबंध हो या ये ग्रह केंद्र/ त्रिकोण स्थान में स्थित और बलवान हों अथवा ये बुध, गुरु या चंद्र से युत-द्रष्ट या शुभ प्रभाव में हों तो व्यक्ति को इंटरव्यू में सफलता मिलती है।
इसके विपरीत यदि व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थेश, दशमेश, पंचमेश एवं नवमेश में से कोई दो ग्रह 6, 8 या 12 वें स्थान में हों या पाप ग्रहों से युत-दृष्ट हों अथवा बलहीन हों या बुध, गुरु एवं चंद्रमा में से कोई एक ग्रह पापाक्रांत, पापयुत, पापदृष्ट या निर्बल हो, तो व्यक्ति बार-बार इंटरव्यू देने पर भी सफल नहीं हो पाता।
इंटरव्यू में सफलता का उपाय:
इंटरव्यू में सफलता हासिल करने के लिए मंत्रशास्त्रियों ने श्री वागीश्वरी मंत्र को अचूक उपाय बतलाया है। यह मंत्र, इसका विनियोग, न्यास ध्यान एवं विधि विधान इस प्रकार हैं—
श्री वागीश्वरी मंत्र
वद वद वाग्वादिनि स्वाहा।
विनियोग:
अस्य श्रीवाग्वादिनिमंत्रस्य कण्वऋषि:, विराट्छंद:,श्री वाग्वादिनि सरस्वती देवता ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।
करन्यास:
अं कं खं गं घं डं आं अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
इं चं छं जं झं ञ ईं तर्जनीभ्यां नम: ।
उं टं ठं डं ढं णं ऊं मध्यमाभ्यां नम: ।
एं तं थं दं धं नं ऐं अनामिकाभ्यां नम: ।
ओं पं फं बं भं पं औं कनिष्ठकाम्यां नम:।
अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।
अंगन्यास:
अं कं खं गं घं डं आं हृदयाय नम: ।
इं चं छं जं झं ञ ईं शिरसे स्वाहा ।
उं टं ठं डं ढं णं ऊं शिखायै वषट् ।
एं तं थं दं धं नं ऐं कवचाय हुम् ।
ओं पं फं बं भं पं औं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अ: अस्त्रायफट्।
ध्यान:
तरुण शकल मिन्दोर्बिभ्रती शुभ्रकांति:,
कुच भरनमिताड्गी सन्निषण्णा सिजाब्जे।
निजकर कमलोद्यल्लेखनी पुस्तकश्री,
सकल विभव सिद्धयै पातु वाग्देवता न:।।
नवीन चंद्रकला को धारण करने वाली, देदीप्यमान कांति, श्वेतकमल पर आसीन, चारो हाथों में कमलकली, लेखनी, पुस्तक एवं श्री को धारण करने वाली वाग्देवी वैभव एवं सिद्धि के लिए हमारी रक्षा करें।
विधि:
नित्यनियम से निवृत्त होकर आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर भस्म का त्रिपुंड या चंदन का तिलक लगाकर मार्जन, आचमन एवं प्राणायाम कर अपने सामने चौकी या पटरे पर पीला कपड़ा बिछाएं। उस पर भोजपत्र पर अष्टगंध एवं चमेली की कलम से उक्त यंत्र लिखकर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान करें।
पंचोपचार (गंध, अक्षत, पुष्प, धूप एवं दीप) या षोडशोपचार से यंत्रराज पर श्रीवाग्वादेवी का पूजन कर मंत्र का अर्थ एवं श्रीवाग्देवी के स्वरूप का ध्यान करते हुए उक्त मंत्र का जप करें। अनुष्ठान में धुले हुए वस्त्र धारण करना, श्वेत चंदन, मंदार या कमलपुष्पों से भगवती का पूजन करना तथा स्फटिक की माला या अक्षमाला पर जप करने का विधान है। अनुष्ठान के दिनों में शारदा स्तोत्र, सिद्ध सारस्वत स्तोत्र एवं श्री सरस्वती सहस्रनाम का पाठ करना अनंत फलदायक है। इस अनुष्ठान में जप संख्या सवा लाख मतांतर से एक लाख है।
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