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Friday, November 20, 2009

शिव ही भैरव - जयगोविंद शास्त्री


वेदोक्ति है कि भैरव शिव: शिव: भैरव अर्थात भैरव ही शिव हैं और शिव ही भैरव हैं। इस तत्व में कोई भेद नहीं है। भगवान भैरव के बारे में कहा गया है कि भैरव: पूर्ण रूपो हि शंकरस्य परात्मन। शिवपुराण में भी भैरव को परमात्मा शिव का रूप ही बताया गया है।


पौराणिक कथा के अनुसार जब सुमेरू पर्वत पर सभी देवताओं ने बrाजी से पूछा- हे परमपिता इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है और जिनका आदि-अंत किसी को भी पता न हो, ऐसे देव के बारे में हम देवताओं को बताने का कष्ट करें? इस पर ब्रrाजी ने कहा- चराचर जगत में अविनाशी तत्व तो केवल मैं ही हूं। इस पर विष्णुदेव ने कहा कि इस संसार का भरण-पोषण मैं करता हूं, इसलिए परमशक्तिमान मैं हूं।


इसकी सत्यता को सिद्ध करने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। वे कहने लगे कि जिनके भीतर समस्त भूत, भविष्य और वर्तमान निहित है और जिनका कोई आदि-अंत नहीं है, जो अजन्मा है, वे तो परम शक्तिमान भगवान रुद्र ही हैं। इस पर ब्रrाजी के पांचवे सिर ने भगवान शिव और माता पार्वती के बारे में कुछ अपमानजनक बातें कहीं, जिससे चारों वेद अत्यंत दु:खी हुए। इसी समय एक दिव्य ज्योति के रूप में नीललोहित भगवान रुद्र प्रकट हुए, जिसे देखकर ब्रrाजी ने कहा- ‘हे चंद्र शंक, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रुद्र रखा है, अत: तुम मेरी सेवा में आ जाओ।’


ब्रrाजी की इस वाणी से भगवान शिव ने क्रोधित होकर भैरव नामक पुरुष उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रrा पर शासन करो। पापभक्षण करने के कारण भक्त तुम्हें पापभक्षक के नाम से भी जानेंगे। भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी पांचवी अंगुली के नख से ब्रrाजी का सिर काट लिया, जिसके कारण इन्हें ब्रrाहत्या के पाप से गुजरना पड़ा। शिवलोक काशी में इन्हें ब्रrाहत्या से मुक्ति मिली थी, जहां पर आज भी ‘कपाल मोचन’ तीर्थ है। यहां दर्शन मात्र से ब्रrाहत्या से मुक्ति मिलती है।


भगवान शिव ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। इसके साथ ही भूत-प्रेत, पिशाच, ब्रrा राक्षस, बेताल, मारण मोहन, उच्चटन विद्वेषण से इनको अपने भक्तों की रक्षा के लिए इन सभी का अधिकारी नियुक्त किया गया। आज भी इनके भक्त इस तरह की परेशानियों से बचने के लिए इनकी पूजा-आराधना करते हैं। तांत्रिक जगत में इन्हीं की आराधना विशेष तौर पर की जाती है।


इनकी प्रार्थना का मंत्र है अतिक्रूर महाकाय, कल्पान्त दहनोपम् भैरव नमस्तुभ्यं मनुज्ञां दातु मर्हसि। इसी मंत्र से मानव मात्र का कल्याण हो जाता है। भगवान भैरव शिव के पांचवे अवतार माने जाते हैं। इनका अवतरण मार्ग शीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी को हुआ। इस दिन इनकी पूजा-आराधना ब्रrाहत्या से मुक्ति दिलाती है। यथा कामं तथा ध्यानं कारयेत साधकोत्म: अर्थात जैसा कार्य हो, साधक को वैसा ही ध्यान करना चाहिए।


इनका सात्विक ध्यान अपमृत्यु का निवारक, आयु आरोग्य का कारक तथा मोक्ष देने वाला है। राजसिक ध्यान साधना चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि देने वाला है। जबकि भूत-प्रेत ग्रहादि द्वारा शत्रुओं के शमन को तामसिक कहा गया है। इनकी श्रद्धा और विश्वास से की गई उपासना भक्तों को दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति दिलाती है।


भैरवजी की प्रार्थना का मंत्र
अतिक्रूर महाकाय,
कल्पान्त दहनोपम्
भैरव नमस्तुभ्यं मनुज्ञां दातु मर्हसि।
इस मंत्र से मानव मात्र का कल्याण होता है।

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