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Saturday, November 21, 2009

महादशा में अंतरदशाएं देती हैं ज्वर - पं. पुष्कर राज


star sys ज्वर के कई भेद, उपभेद हैं। यह बीमारी सामान्य होती है किंतु परिणाम कई बार भयावह हो जाते हैं। सूर्य, चंद्र, बुध व शनि ज्वर के प्रमुख कारक ग्रह हैं। नीच के सूर्य व नीच के ही चंद्रमा की महादशा में या केतु की महादशा में बुध की अंतरदशा अथवा शनि की महादशा में राहु की अंतरदशा में बुखार भयानक रूप ले लेता है। आयुर्वेद ने ज्वर को कई तरह से वर्गीकृत किया है।
धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत, शारंगधर, काश्यप आदि ने ज्वर के प्रकारों पर विस्तृत चर्चा की है। इसके मुख्यत: तीन भेद हैं। अधिक जम्हाई का आना वात ज्वर, आंखों में जलन होना पित्त ज्वर एवं अन्न से अधिक अरुचि होना कफ ज्वर का लक्षण कहा गया है।
ज्योतिषीय कारण : गुणाकर, वराहाचार्य, श्रीपति आदि दैवज्ञों ने माना है कि सूर्य, चंद्र एवं बुध-शनि ज्वर के प्रधान रूप से कारक ग्रहों में होते हैं। नीचस्थ सूर्य व नीचस्थ चंद्र की महादशा में अथवा केतु की महादशा में बुध की अंतरदशा या शनि की महादशा में राहु की अंतरदशा हो तो जातक बुखार से जकड़ जाता है।
कब कौनसा ज्वर : ज्योतिष का मत है कि लग्नेश व षष्ठेश सूर्य युक्त हो तो जातक को ज्वर का भय होता है। षष्ठ व अष्टम में सूर्य हो या अष्टम में चंद्रमा राहु युक्त हो तो चौथिया (चार दिन के अंतराल वाला)। अष्टमेश चंद्र या राहु या केतु युक्त हो तो चौथिया ज्वर होता है। लग्न में मंगल व अष्टमेश में सूर्य हो तो दाह ज्वर होता है। चंद्रमा शीत व कफ ज्वर, बुध पित्त ज्वर व शनि वात ज्वर के कारक ग्रह हैं। इसी प्रकार राहु की महादशा में बुध की अंतरदशा भी ज्वर के लिए जिम्मेदार होती है।
अनुभूत कारण : निरंतर या आए दिन ज्वर पीड़ित रहने वाले कई जातकों की कुंडलियों में देखा गया है कि उनके राहु में बुध की जब अंतरदशा चली तो वह बुखार, टाइफाईड व अन्य ज्वरों से लगातार परेशान होता है। क्षीणकाय हो गया और आर्थिक तथा घरेलू परेशानियों से त्रस्त हो गया।
ज्योतिषीय उपचार : जातक की कुंडली व दशा-अंतरदशा पर विचार करने के बाद जिस ग्रह के कारण ज्वर हो रहा हो, उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान और मंत्र जाप करना चाहिए। जातक स्वयं करे तो बेहतर और यदि किसी कारण से स्वयं नहीं कर सके तो घर का अन्य व्यक्ति उसके नाम से दान व मंत्रों का जाप कर सकता है। कई बार इन ग्रहों के यंत्रादि धारण करने से भी बाधा से छुटकारा मिलता है। ज्वर पीड़ित के कक्ष में निरंतर गुग्गुल की धूप और संबंधित ग्रह के मंत्र की ध्वनि निश्चित ही लाभकारी होती है।

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