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Tuesday, November 24, 2009

कई महान योगों ने बनाया टाटा को ‘रतन’ - पं. जयगोविंद शास्त्री

tata कर्मप्रधान जीवन में कर्म करते हुए अगर भाग्य का भी साथ मिल जाए तो व्यक्ति ऊंचाइयों के शिखर पर पहुंच जाता है। कुछ इसी तरह का भाग्य उद्योगपति रतन टाटा का है। इनकी जन्मकुंडली में ४६ शुभ योग हैं।

रतन टाटा का जन्म २८ दिसंबर, १९३७ को सुबह ६ बजकर ३0 मिनट पर मुंबई में हुआ। उनके जन्म के समय धनु लग्न और तुला राशि का उदय हो रहा था। अन्य ग्रहों में लग्न में सूर्य, बुध, शुक्र, द्वितीय धन भाव में गुरु तथा तृतीय पराक्रम भाव में पृथ्वीपुत्र मंगल बैठे हैं, जबकि शनि चतुर्थ, केतु छठे, चंद्र ग्यारहवें तथा राहु बारहवें भाव में हैं।

इनकी जन्मकुंडली में ४६ शुभ योगों का निर्माण हुआ है। जिनमें सर्वोत्तम गजकेसरी योग, चार राजयोग, पांच कर्म जीवयोग तथा तीन वेशियोग हैं। इसी के साथ चार पूर्ण आयु योग, महालक्ष्मीवान योग, अत्यंत धनाढ्य योग के साथ-साथ कई धनयोगों का भी निर्माण हुआ है।

धनु लग्न की कुंडली में लग्न के स्वामी बृहस्पति नीच राशिगत मकर में बैठे हैं। साथ ही इस राशि के स्वामी शनि केंद्र भाव में बैठकर नीच भंगयोग का निर्माण कर रहे हैं। महान गजकेसरी योग ने रतन टाटा को दिग्विजयी बनाया। लग्न भाव में ही भाग्य के स्वामी, कर्म के स्वामी और लाभ के स्वामी बैठे हैं।

किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यह योग हो तो श्रेष्ठ भाग्य कर्म और लाभ की ओर ले जाता है। यही योग व्यक्ति को विरासत में अथाह धन दिलाता है। लग्नेश गुरु और धनेश शनि का राशि परिवर्तन भी इन्हें अतुल धन दिलाने का संकेत कर रहा है।

रतन टाटा की जन्मकुंडली के पांच कर्म जीव योग, जो दशमेश बुध के द्वारा निर्मित हैं, इन्हें पूर्ण कर्मयोगी बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। २२वें वर्ष से ही भाग्योदय का आनंद लेने वाले रतन का जन्म ही नीचभंग राजयोग बनाने वाले गुरु की महादशा में हुआ।

इनकी जन्मकुंडली में कर्म जीव योगों का अत्यधिक प्रभाव ३२वें वर्ष से हुआ। इनको जनवरी,१९७१ से बुध की महादशा प्रारंभ हुई। यह अवधि इनके जीवन की श्रेष्ठतम अवधियों में से एक रही। यहां से रतन टाटा की ख्याति बढ़नी शुरू हुई।

इस अवधि में ये एक से बढ़कर एक मील के पत्थर पार करते रहे। बुध की महादशा इन पर १९८८ तक रही, उसके बाद योगकारक केतु की महादशा १९९५ तक रही। महान धन, यश और कीर्ति योग का निर्माण करने वाले शुक्र की महादशा इन पर १९९५ से आरंभ हुई। यह योग तब से अब तक रतन टाटा को एक से बढ़कर एक उपलब्धि दिला रहा है।

अत्यंत धनाढ्य योग के साथ-साथ नीच भंग राजयोग बनाने वाले बृहस्पति की अंतरदशा इन पर मार्च, २00५ से नवंबर, २00७ तक रही। इस अवधि में रतन ने एक से बढ़कर एक कारनामे किए और इन्हें विश्वपटल पर अभूतपूर्व ख्याति मिली।

वर्तमान में इन पर धनेश और जनता के कारक शनि की अंतरदशा चल रही है। इसी के फलस्वरूप ये लखटकिया कार बाजार में लाकर जन-जन के चहेते बने हैं। शनि की यह दशा जनवरी, २0११ तक रहेगी। उसके बाद इनकी कुंडली में बुध की अंतरदशा प्रारंभ होगी। यह योग इन्हें आगे भी ढेरों सफलताएं दिलाएगा।

3 comments:

  1. गजकेसरी योग,meri kundali me hai ???????? 9 december 1984 samay 4-55 am

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  2. गजकेसरी योग,meri kundali me hai ???????? 9 december 1984 samay 4-55 am varanasi





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